वरुथिनी एकादशी व्रत कथा प्रारम्भ (Page 1/3)

युधिष्ठिर ने पूछा – “वासुदेव ! आपको नमस्कार है। वैशाख मास के कृष्ण पक्ष में किस नाम की एकादशी होती है ? उसकी महिमा बताइये।”
भगवान श्री कृष्ण बोले- “राजन ! वैशाख कृष्ण पक्ष की एकादशी ‘वरुथिनी’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह इस लोक और परलोक में भी सौभाग्य प्रदान करनेवाली है।‘वरुथिनी’ के व्रत से हीं सदा सौख्य का लाभ और पाप की हानि होती है। यह समस्त लोकों को भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाली है।
‘वरुथिनी’ के ही व्रत से मान्धाता तथा धुंधुमार आदि अनेक राजा स्वर्गलोक को प्राप्त हुए हैं । जो दस हजार वर्षों तक तपस्या करता है उसके समान ही फल ‘वरुथिनी’ के व्रत से भी मनुष्य प्राप्त कर लेता है।”
नृपश्रेष्ठ! घोड़े के दान से , हाथी का दान श्रेष्ठ है। भूमिदान उससे भी बड़ा है। भूमिदान से भी अधिक महत्व तिलदान का है। तिलदान से बढ़कर स्वर्णदान और स्वर्णदान से बढ़कर अन्नदान है, क्योंकि देवता, पितर तथा मनुष्यों को अन्न से ही तृप्ति होती है ।