ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी “आखू (मूषक)” रथा गणेश जी पूजा विधि एवं कथा

ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष चतुर्थी को “आखू (मूषक)” रथा गणेश जी के स्वरूप की पूजा करने का विधान है। प्रात:काल उठकर स्नान कर गणेश जी के सामने दोनों हाथ जोड़कर मन-ही-मन इस व्रत का संकल्प कर इस प्रकार कहें:- “हे एकदंत, मूषक रथा गणेश जी, मैं चतुर्थी व्रत को करने का संकल्प करता /करती हूँ । आज मैं पूरे दिन निराहार रहकर आपके स्वरूप का ध्यान करूँगा/ करूँगी एवं शाम को आपका पूजन कर चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य देने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करूँगा/ करूँगी।”


संकल्प के बाद पूरे दिन गणेश जी के भजन और ध्यान में लगे रहे। शाम को स्नान कर, स्वच्छ वस्त्र धारण कर विधिपूर्वक धूप, दीप, अक्षत, चंदन, सिंदूर, नैवेद्य से गणेश जी का पूजन करें। नैवेद्य के रूप में घी में बने हलुवा, लड्डु, पूड़ी इत्यादि का भोग लगायें। पूजन के बाद चंद्रमा निकलने पर पूजन कर अर्घ्य अर्पित करें। ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी व्रत कथा सुने अथवा सुनाये। ब्राह्मणों को अपने सामर्थ्यानुसार दान दें। उसके बाद प्रसाद को सभी में बाँटकर स्वयं भी ग्रहण करें। इस व्रत के करने से सौभाग्य एवं पति की प्राप्ति होती है। इस व्रत के प्रभाव से शत्रुओं का विनाश होता है और सभी प्रकार के मनोरथ सिद्ध होते हैं।