आश्विन (क्वार) गणेश चतुर्थी व्रत कथा- (संकठा चतुर्थी)

युधिष्ठिर ने पूछा कि हे कृष्ण जी! मैंने सुना है कि आश्विन कृष्ण चतुर्थी को संकटा चतुर्थी कहते हैं। उस दिन किस भांति गणेश जी की पूजा करनी चाहिए? हे जगदीश्वर! आप कृपा करके मुझसे विस्तार पूर्वक कहिए।
श्रीकृष्ण जी ने उत्तर में कहा कि प्राचीन काल में यही प्रश्न पार्वती जी ने गणेश जी से किया था कि हे देव! क्वार मास में किस प्रकार गणेश जी की पूजा की जाती है? उसके करने का क्या फल होता है? मेरी जानने की इच्छा है यह सुनकर हँसते हुए-
गणेश जी ने कहा- हे माता! सिद्धि की कामना रखने वाले व्यक्ति को चाहिए कि आश्विन मास में कृष्ण नामक गणेश की पूजा पूर्वोक्त विधि से करें।

इस दिन भोजन न करें तथा क्रोध, पाखण्ड, लोभ आदि का परित्याग कर गणेश जी के स्वरूप का ध्यान करते हुए पूजन करें। आश्विन कृष्ण चतुर्थी का व्रत संकटनाशक है। इस दिन हल्दी और दूब का हवन करने से सप्तद्वीप वाली पृथ्वी का राज हस्तगत (प्राप्त) होता है।
एक समय की बात है कि बाणासुर की कन्या उषा ने सुषुप्तावस्था में अनिरुद्ध का स्वप्न देखा, अनिरुद्ध के विरह से वह इतनी कामासक्त हो गई कि उसके चित्त को किसी भी प्रकार से शांति नहीं मिल रही थी।
उसने अपनी सहेली चित्रलेखा से त्रिभुवन के सम्पूर्ण प्राणियों के चित्र बनवाए। जब चित्र में अनिरुद्ध को देखा तो कहा- मैंने इसी व्यक्ति को स्वप्न में देखा था। इसी के साथ मेरा पाणिग्रहण भी हुआ था। हे सुजघने! यह व्यक्ति जहाँ कहीं मिल सके , ढ़ूँढ़ लाओ। अन्यथा इसके वियोग में मैं अपने प्राण छोड़ दूँगी।