भाद्र मास कृष्ण पक्ष संकष्टी चतुर्थी - बहुला चतुर्थी व्रत कथा - Bahula Chauth Vrat Katha Page 2/3

पूर्वकाल में नल नामक एक पुण्यात्मा और यशस्वी राजा हुए उनकी रूपशालिनी रानी दमयंती नाम से प्रसिद्ध थी ।
एक बार उन्हें शाप ग्रस्त होकर राजच्युत होना पड़ा और रानी के वियोग में कष्ट सहना पड़ा। तब उनकी रानी दमयन्ती ने इस सर्वोत्तम व्रत को किया।
पार्वती जी ने पूछा कि हे पुत्र! दमयन्ती ने किस विधि से इस व्रत को किया और किस प्रकार व्रत के प्रभाव से तीन महीने के अन्दर ही उन्हीं अपने पति से मिलने का सन्योग प्राप्त हुआ? इन सब बातों को आप बतलाइए।
श्रीकृष्ण जी ने कहा कि हे युधिष्ठिर! पार्वती जी के ऐसा पूछने पर बुद्धि के भंडार गणेश जी ने जैसा उत्तर दिया , उसे मैं कह रहा हूँ, आप सुनिए ।
श्री गणेश जी कहते हैं कि हे माता! राजा नल को बड़ी-बड़ी आपदाओं का सामना करना पड़ा। हाथी खाने से हाथी और घुड़साल से घोड़ोंका अपहरण हो गया। डाकुओं ने राजकोष लूट लिया और अग्नि की ज्वालाओं में घिरकर उनका माल भस्मसात हो गया।
राज्य को नष्ट करने वाले मंत्री लोगों ने भी साथ छोड़ दिया। राजा जुए में सर्वस्व गंवा बैठे । उनकी राजधानी भी उनके हाथ से निकल गई। सभी ओर से निराश और असहाय होकर राजा नल वन में चले गए। वन में रहते समय उन्हें दमयन्ती के साथ अनेक कष्ट झेलने पड़े। इतना होते हुए उनका रानी से वियोग हो गया।
तत्पश्चात् राजा किसी नगर में सईस का काम करने लगे। रानी किसी दूसरे नगर में रहने लगी तथा राजकुमार अन्यत्र नौकरी करने लगा। जो किसी समय राजा,रानी, राजपुत्र कहे जाते थे , वे ही अब भिक्षा मांगने लगे। तरह-तरह के रोगों से पीड़ीत होकर, एक-दूसरे से विलग होकर कर्म फल को भोगते हुए दिन बीतने लगे।
एक समय की बात है कि वन में भटकते हुए दमयन्ती ने महर्षि शरभंग के दर्शन किये। उसने उनके पैरों पर नतमस्तक हो हाथ जोड़कर कहा। दमयन्ती ने पूछा कि हे ऋषिराज! मेरा अपने पति से कब मिलन होगा? किस उपाय से मुझे हाथी-घोड़ों से युक्त घनी आबादी वाली नगरी मिलेगी? मेरा भाग्य कब लौटेगा? हे मुनिवर! आप निश्चित रूप से बतलाइए।