फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष विधि एवं कथा । skanda sashti puja vidhi

फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को विधिपूर्वक भगवान पशुपति की मृण्मयी मूर्ति बनाकर विविध उपचारों से उनकी पूजा करें। शतरुद्री के मंत्रों से पृथक-पृथक पंचामृत एवं जल द्वारा स्नान कराकर श्वेत चंदन अर्पित करें; फिर अक्षत, सफेद फूल, विल्वपत्र, धतूरे के फूल, अनेक प्रकार के फल और भली-भाँति पूजा करके विधिवत आरती करें। तदनन्तर क्षमा-प्रार्थना करके प्रणामपूर्वक उन्हें कैलास के लिये विसर्जन करें। जो स्त्री अथवा पुरुष इस प्रकार भगवान शिवकी पूजा करते हैं, वे इस लोक में श्रेष्ठ भोगों का उपभोग करके अंत में भगवान शिव के स्वरूप को प्राप्त करते हैं।

स्कंद षष्ठी । Skanda Shashti

शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान की तिथि कही गई है। इस तिथि को भगवान स्कंद की पूजा की जाती है। अत: इसे स्कंद-षष्ठी कहते हैं । इस तिथि को ही कृत्तिकाओं के पुत्र कार्तिकेय का आविर्भाव हुआ था। इसी तिथि को कार्तिकेय देवसेना के सेनापति हुये थे। जो व्यक्ति इस तिथि को संयमपूर्वक केवल फल के आहार पर रहकर इनकी पूजा करता है, उसे यदि पुत्र न हो तो पुत्र की प्राप्ति होती है । इतना ही नहीं ,मनुष्य मन से भी जिन-जिन वस्तुओं की इच्छा करेगा, वह उसे सुलभ हो जायेगी। जो व्यक्ति स्वामी कार्तिकेय के उपर्युक्त गुणनामपूर्ण स्तोत्र का पाठ करता है, उसके घर में बच्चों का सदा कल्याण होता है और वे नीरोग रहते हैं।

स्कंद षष्ठी पुजा विधि । Skanda Shashti Puja Vidhi

इस तिथि को व्रत कर घृत, दही जल और पुष्पों से स्वामी कार्तिकेय को दक्षिण की ओर मुख करके अर्घ्य देना चाहिये:‌ -
रुद्रार्यमाग्निज विभो गंगागर्भ नमोऽस्तु ते।
प्रीयतां देवसेनानी: सम्पादयतु हृद्गतम्॥
अर्घ्य के बाद । विधिपूर्वक स्कंद भगवान की पूजा करें।तत्पश्चात् दोनों हाथ जोड़कर निम्न प्रकार से भगवान कार्तिकेय की स्तुति करें:-
प्रभो! आप भगवान शंकर के सुपुत्र हैं। आप षण्मुख, स्कन्द, विश्वेश, कुक्कुटध्वज, पावकि, शत्रुओं को कम्पित करनेवाले,कुमारेश , बालग्रहानुग, शत्रुओं को परास्त करनेवाले,क्रौञ्चविध्वंसक(क्रौञ्चनामक पर्वतको, जो आसाममें स्थित है, विदीर्ण करनेवाले), कृत्तिकानंदन, शिवकुमार, भूतों तथा ग्रहों के स्वामी, अग्निनन्दन तथा भूतभावन भगवान् शंकर की संतान हैं। त्रिलोचन !आपको हमारा नमस्कार है।
जो व्यक्ति स्वामी कार्तिकेय के उपर्युक्त गुणनामपूर्ण स्तोत्र का पाठ करता है, उसके घर में बच्चों का सदा कल्याण होता है और वे नीरोग रहते हैं।

स्कंद षष्ठी महातम्य । Skanda Shashti Mahaatamy

इस व्रत को करने से भगवान स्कंदकी कृपा से सिद्धि, धृति,तुष्टि,राज्य,आयु,आरोग्य और मुक्ति मिलती है । जो मनुष्य उपवास न कर सके, वह रात्रि व्रत ही करे, तब भी उस मनुष्य को दोनों लोकों में उत्तम फल की प्राप्ति होती है ।जो पुरुष षष्ठी व्रत के महात्म्य का भक्तिपूर्वक श्रवण करता है, वह भी कार्तिकेय की कृपा से विविध उत्तम भोग, सिद्धि,तुष्टि,धृत्ति और लक्ष्मी को प्राप्त करता है । परलोक में वह उत्तम गति का अधिकारी होता है।

स्कंद षष्ठी कथा । Skanda Shashti Katha

सृष्टि का विस्तार हो जाने पर देवताओं और दानवोंमें एक-दूसरे को परास्त करने की इच्छा से सदा युद्ध होने लगा। दैत्यों के सेनाध्यक्ष बड़े बलवान थे उनके बल की कोई सीमा नहीं थी। उस घोर संग्राम में देवता दानवों के तीक्ष्ण बाणों से प्रतिदिन हार जाते थे।
उनकी पराजय देखकर देवगुरु बृहस्पति जी ने कहा- “देवताओं! तुम्हारी सएना का कोई सेनाध्यक्ष नहीं है और केवल इंद्र से इस सेना की रक्षा नितांत असम्भव है। अत: तुमलोग अपनी सेनाध्यक्ष का अन्वेषण(खोज) शीघ्र करो।”
बृहस्पतिजी के ऐसा कहने पर सभी देवता ब्रह्माजी के पास गये और उनसे कहा- “भगवन! हमें आप सेनाध्यक्ष देने की कृपा करें।”
इसके बाद ब्रह्माजी सभी देवताओं के साथ शंकर भगवान के पास कैलाश पर्वत पर गये।वहां पशुपति भगवान शंकर की सभी देवताओं ने स्तुति की और कहा- “देवेश! दानवों के वध के लिये आप हमें सेनाध्यक्ष प्रदान करें।”
तब भगवान शंकर ने कहा-देवगण आपलोग आपलोग्स्वस्थ एवं निश्चिंत हो जायँ। मैं आपलोगों को सेनापति दूँगा।
राजन! यो कहकर भगवान रुद्रने देवताओंको जाने की आज्ञा दे दी और पुत्रोत्पत्ति के निमित्त शक्ति(माता पार्वती) को प्रेरित किया जिससे भगवान स्कंद कुमार का जन्म हुआ । स्कंद कुमार का जन्म शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को हुआ था।
स्कंद कुमार को भगवान रुद्र ने कहा- पुत्र! तुम भूत,ग्रह एवं विनायकों के नेता बनो और देवताओं की सेना के सेनापति बन जाओ।अग्निके पुत्र होनेसे इनका नाम ‘पावकि’ हुआ। यद्यपि इनकी माता गौरी हैं, किंतु कृत्तिकादि छ: माताओं ने इन्हें दुग्ध-पान कराकर पाला था, अत: ये ‘कार्तिकेय’ कहलाये।
सम्पूर्ण पापों के प्रशमन (नाश) करनेवाले स्वयं भगवान शंकर ही स्कंदरूप में प्रकट हुये। ब्रह्माजी ने इन्हें षष्ठी तिथि प्रदान की है। अत: जो व्यक्ति इस तिथि को संयमपूर्वक केवल फल के आहार पर रहकर इनकी पूजा करता है, उसे यदि पुत्र न हो तो पुत्र की प्राप्ति होती है ।
इतना ही नहीं ,मनुष्य मन से भी जिन-जिन वस्तुओं की इच्छा करेगा, वह उसे सुलभ हो जायेगी।जो व्यक्ति स्वामी कार्तिकेय के उपर्युक्त गुणनामपूर्ण स्तोत्र का पाठ करता है, उसके घर में बच्चों का सदा कल्याण होता है और वे नीरोग रहते हैं।