कामदा एकादशी व्रत कथा (Page 4/4)

ऋषि बोले- “भद्रे ! इस समय चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की ‘कामदा’ नामक एकादशी तिथि है , जो सब पापों को हरने वाली और उत्तम है। तुम उसी का विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत का जो पुण्य हो , उसे अपने स्वामी को दे डालो । पुण्य देने पर क्षणभर में ही उसके शाप का दोष दूर हो जायेगा।”
राजन! मुनि का यह वचन सुनकर ललिता को बड़ा हर्ष हुआ।
उसने एकादशी को उपवास करके दवादशी के दिन उन ब्रह्मर्षि के समीप ही भगवान वासुदेव के [श्री विग्रह के] समक्ष अपने पति के उद्धार के लिये यह वचन कहा- “मैंने जो यह कामदा एकादशी का उपवास व्रत किया है , उसके पुण्य के प्रभाव से मेरे पति का राक्षस भाव दूर हो जाय ।”
वशिष्ठ जी कहते हैं – ललिता के इतना कहते हीं उसी क्षण ललित का पाप दूर हो गया। उसने दिव्य देह धारण कर लिया। राक्षस-भाव चला गया और पुन: गंधर्वत्व की प्राप्ति हुई।
नृपश्रेष्ठ ! वे दोनों पति-पत्नी ‘कामदा’ एकादशी के प्रभाव से पहले की अपेक्षा भी अधिक सुन्दर रूप धारण करके विमानपर आरूढ़ हो अत्यन्त शोभा पाने लगे। यह जानकर इस एकादशी के व्रत का यत्नपूर्वक पालन करना चाहिये। मैंने लोगों के हित के लिये तुम्हारे सामने इस व्रत का वर्णन किया है। कामदा एकादशी ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का भी नाश करनेवाली है। राजन ! इसके पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।