ममकर संक्रान्ति का महत्व - Makar Sakranti 2023

पुराणों केअनुसार दक्षिणायण का अर्थ देवताओं की रात्रि या नकारात्मकता का प्रतीक  तथा  उत्तरायणको देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। मकर संक्रांति केदिन से सुर उत्तरायण हो जाते हैं। इस दिन से सभी शुभ कार्य, धर्म-कर्म शुरु किये जाते हैं। मकर संक्रांति के दिन  जो भी दान किया जाता है उसका फल अन्य दिनों सेसौ गुणा प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान करने से मोक्ष कीप्राप्ति होती  है। इस दिन तिल, गुड़, खिचड़ी, घे,कम्बल इत्यादिदान किये जाते हैं।

माघ स्नान विधि:- - (Maagh Snaan Vidhi)

पौष पूर्णिमा के दिन स्नान कर हाथ में जल लें कर संकल्प करें:-
॥स्वर्गलोक चिरवासो येषां मनसि वर्तते यत्र काच्पि जलै जैस्तु स्नानव्यं मृगा भास्करे॥
.संकल्प के बाद जल भूमि पर छोड़ दें।
उसके बाद भगवान नारायण की पूजा करें। पौष पूर्णिमा से लेकर माघ पूर्णिमा तक प्रत्येक दिन प्रात:काल स्नान कर पूजन करें। माघ पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद कम्बल,तिल, वस्त्र तथा अन्य सामग्री ब्राह्मणों को दान करें।

ममकर संक्रांति पूजा सामग्री:

-सुर्यदेव की प्रतिमा, चंदन, पुष्प, पुष्प माला, अक्षत, धूप, दीप, घी, गंध, कलश, नैवेद्य, चौकी अथवा लकड़ी का पटरा, आसन, जल-पात्र

मकर संक्रांति पूजा विधि:-

मकर संक्रांति के दिनप्रात:काल उठ नित्य क्रम कर दातुन करें। उसके पश्चात तिलमिश्रित जल से स्नान करें।स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को शुद्ध कर लें। भूमिपरचंदन से कर्णिका सहित अष्टदल कमल बनायें । कमल पर सुर्य देव का आवाहन कर उन्हें स्थापितकरें।।
सुर्य स्थापना के मंत्र:- सुर्याय नम: (इस मंत्र से कर्णिका में सुर्य देव को स्थापितकरें।)
आदित्याय नम: (इस मंत्र से पूर्वदल पर में सुर्य देव को स्थापितकरें।)
सप्तार्चिषे नम: (इस मंत्र से अग्निकोण स्थित दल पर में सुर्यदेव को स्थापित करें।)
ऋङ्मण्डलाय नम: (इस मंत्र से दक्षिणदल पर में सुर्य देव को स्थापितकरें।)
सवित्रे नम: (इस मंत्र से नैऋत्य कोणवाले दल पर में सुर्य देवको स्थापित करें।)
वरुणाय नम: (इस मंत्र से पश्चिमदल पर में सुर्य देव को स्थापितकरें।)
सप्तसप्तये नम: (इस मंत्र से वायव्य कोण वाले दल पर में सुर्यदेव को स्थापित करें।)
मार्तण्डाय नम: (इस मंत्र से उत्तरदल पर में सुर्य देव को स्थापितकरें।)
विष्णवे नम: (इस मंत्र से ईशान कोण वालेदल पर में सुर्य देवको स्थापित करें।)
इस प्रकार हाथ में अक्षत लेकर मंत्र के द्वारा सुर्य देव कोस्थापित करे। उसके बाद उनकी अर्चना करे।लकड़ी के पटरे अथवा चौकी पर सुर्यदेव की प्रतिमा स्थापित करे।अक्षत, चंदन ,धूप, दीप, पुष्प, पुष्पमाला, नैवेद्य आदिसे सुर्यदेव की पूजा करें और उन्हें अर्घ्य प्रदान करें। तत्पश्चात यथाशक्ति सोने/चाँदीका कमल बनवाकर उसे घृतपूर्ण पात्र और कलश के साथ ब्राह्मण को दान करें। इसके बाद चंदनऔर पुष्पयुक्त जल से भूमिपर सुर्यदेव को अर्घ्य प्रदान करें। अर्घ्य प्रदान करते समयइस प्रकार कहें – “अनन्त! आप ही विश्व हैं, विश्व आपका सवरूप है, आप विश्व में सर्वाधिक तेजस्वी, स्वयं उत्पन्न होनेवाले , धाता और ऋग्वेद, सामवेद एवं यजुर्वेद के स्वामी है, आपकोबारम्बार नमस्कार है।” इस विधि से यह पूजा प्रत्येक संक्रांतिको अथवा वर्ष में एक बार सारा कार्य बारह बार करें। यह सब कामनाओं को पूर्ण करनेवालाऔर स्वर्ग में अक्षय फल प्रदायक है।