निर्जला एकादशी व्रत कथा (Page 3/6)

व्यासजी ने कहा- भीम ! ज्येष्ठ मास में सूर्य वृष राशि पर हो या मिथुन राशि पर; शुक्लपक्ष में जो एकादशी हो, उसका यत्नपूर्वक निर्जल व्रत करो। केवल कुल्ला या आचमन करने के लिये मुख में जल डाल सकते हो, उसको छोड़कर और किसी प्रकार का जल विद्वान पुरुष मुख में न डाले, अन्यथा व्रत भंग हो जाता है।
एकादशी को सुर्योदय से लेकर दूसरे दिन के सुर्योदय तक मनुष्य जल का त्याग करे तो यह व्रत पूर्ण होता है। तदनंतर द्वादशी को निर्मल प्रभात काल में स्नान करके ब्राह्मणों को विधिपूर्वक जल और सुवर्ण का दान करे।
इस प्रकार सब कार्य पूरा करके जितेंद्रिय पुरुष ब्राह्मणों के साथ भोजन करे। वर्ष भर में जितनी एकादशियाँ होती है, उन सबका फल निर्जला एकादशी के सेवन से मनुष्य प्राप्त कर लेता है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है ।
शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवा केशव ने मुझसे कहा था कि ‘यदि मानव सब को छोड़कर एकमात्र मेरी शरण में आ जाय और एकादशी को निराहार रहे तो वह सब पापों से छूट जाता है।’
एकादशी व्रत करनेवाले पुरुष के पास विशालकाय, विकराल आकृति और काले रंगवाले दण्ड-पाशधारी भयंकर यमदूत नहीं जाते। अन्तकाल में पीताम्बरधारी सौम्य स्वभाववाले, हाथ में सुदर्शन धारण करनेवाले और मन के समान वेगशाली विष्णुदूत आकर इस वैष्णव पुरुष को भगवान विष्णु के धाम ले जाते हैं।