पापांकुशा एकादशी व्रत कथा प्रारम्भ (Page 2/2)

जो पुरुष विष्णु भक्त होकर भगवान शिव की निन्दा करता है ; वह भगवन विष्णु के लोक में स्थान नहीं पाता ; उसे निश्चय ही नरक में गिरना पड़ता है। इसी प्रकार यदि कोई शैव या पाशुपत होकर भगवान विष्णु की निन्दा करता है तो उसे घोर नरक में डालकर तब तक पकाया जाता है , जबतक कि चौदह इंद्रोंकी आयु पूरी नहीं हो जाती। यह एकादशी स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली , शरीर को नीरोग बनानेवाली और सुन्दर स्त्री, धन एवं मित्र देनेवाली है। राजन ! एकादशी के दिन में उपवास और रात्रि में जागरण करने से अनायास ही विष्णु धाम की प्राप्ति हो जाती है। राजेंद्र ! वह पुरुष मातृ- पक्ष की दस, पिता के पक्ष की दस तथा स्त्री के पक्ष की भी दस पीढ़ियों का उद्धार कर देता है। एकादशी व्रत करनेवाले मनुष्य दिव्यरूपधारी, चतुर्भुज , गरुड़ की ध्वजा से युक्त, हार से सुशोभित और पीताम्बरधारी होकर भगवान विष्णु के धाम को जाते हैं। आश्विन के शुक्लपक्ष में पापाङ्कुशा व्रत करनेमात्र से ही मानव सब पापों से मुक्त हो श्री हरि के लोक में जाता है। जो पुरुष स्वर्ण, तिल , भूमि, गौ, अन्न, जल, जूतेऔर छाते का दान करता है वह कभी यमराजको नहीं देखता । नृपश्रेष्ठ! दरिद्र पुरुष को भी चाहिये कि वह यथाशक्ति स्नानदान आदि क्रिया करके अपने प्रत्येक दिन को सफल बनावे।