पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Page 3/4)

वे घोड़े से उतरकर मुनियों के सामने खड़े हो गये और पृथक-पृथक उन सबकी वंदना करने लगे।
वे मुनि उत्तम व्रत का पालन करनेवाले थे। जब राजा ने हाथ जोड़कर दण्डवत् किया, तब मुनि बोले- “राजन! हमलोग तुम पर प्रसन्न हैं।”
राजा बोले- “आपलोग कौन है? आपके नाम क्या हैं तथा अपलोग यहाँ किसलिए एकत्रित हुए हैं? यह सब सच-सच बताइए।”
मुनि बोले- “राजन! हमलोग विश्वदेव हैं, यहां स्नान के लिये आये हैं। माघ निकट आया है। आज से पांचवे दिन माघ का स्नान आरम्भ हो जायगा। आज ही ‘पुत्रदा’ नामक एकादशी है, जो व्रत करनेवाले मनुष्यों को पुत्र देती है। ”
राजा ने कहा- “विश्वेदेवगण! यदि आपलोग प्रसन्न हैं तो मुझे पुत्र दिजिये।”
मुनि बोले- “राजन ! आज के ही दिन ‘पुत्रदा’ नामकी एकादशी है। इसका व्रत बहुत विख्यात है। तुम आज इस उत्तम व्रत का पालन करो। महाराज ! भगवान केशव के प्रसाद से तुम्हें अवश्य पुत्र प्राप्त होगा। ”