पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Page 3/4)

उनकी बात सुनकर महर्षि लोमश दो घड़ीतक ध्यानमग्न हो गये।
तत्पश्चात राजा के प्राचीन जन्म का वृतांत जानकर उन्होंने कहा- “ प्रजावृन्द! सुनो- राजा महीजित पूर्वजन में मनुष्यों को चूसनेवाला धनहीन वैश्य था।
वह वैश्य गाँव-गाँव घूमकर व्यापार किया करता था।
एक दिन जेठ के शुक्ल पक्ष में दशमी तिथि को जब दोपहर का सूर्य तप रहा था , वह गाँव की सीमा में एक जलाशय पर पहुँचा। पानी से भरे हुई बावली देखकर वैश्य ने वहाँ जल पीने का विचार किया।
इतने में ही वहाँ बछड़े के साथ एक गौ भी आ पहुँची। वह प्यास से व्याकुल और ताप से पीड़ित थी ; अत: बावली में जाकर जल पीने लगी।
वैश्य ने पानी पीती हुई गाय को हाँककर दूर हटा दिया और स्वयं पानी पिया।
उसी पापकर्म के कारण राजा पुत्रहीन हुए हैं। किसी जन्म के पुण्य से इन्हें अकण्टक राज्य की प्राप्ति हुई है। ”