षट्तिला एकादशी व्रत विधि एवं कथा - Shattila Ekadashi Vrat Vidhi and Katha in Hindi

माघ मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को षट्तिला एकादशी कहते हैं। इस व्रत के करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश होता है। इस व्रत में छह प्रकार से तिल का उपयोग करना श्रेष्ठ माना गया है : -
1. तिल स्नान
2. तिल की उबटन
3. तिलोदक
4. तिल का हवन
5. तिल का भोजन
6. तिल का दान

षट्तिला एकादशी व्रत महात्म्य:- (Importance of shattila Ekadashi)

इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी तरह के पाप कर्म नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत में तिल के उपयोग का बहुत महत्व है। इससे दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट से मुक्ति मिलती है।

षट्तिला एकादशी व्रत पूजन सामग्री:- (Puja Saamagree for shattila Ekadashi Vrat)

∗ श्री विष्णु जी की मूर्ति
∗ पुष्प
∗ पुष्पमाला
∗ नारियल
∗ सुपारी
∗ अनार,
∗ आँवला,
∗ लौंग
∗ बेर
∗ अन्य ऋतुफल
∗ धूप
∗ दीप
∗ घी
∗ पंचामृत (दूध(कच्चा दूध),दही,घी,शहद और शक्कर का मिश्रण)
∗ अक्षत
∗ तुलसी दल
∗ चंदन- लाल
∗ मिष्ठान(तिल से बने हुए)
∗ गोबर की पिंडीकायें- १०८ (तिल तथा कपास मिश्रित)

षट्तिला एकादशी व्रत की विधि (Puja Method Of shattila Ekadashi)

इस व्रत को करने के लिये भक्तों को एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि को सात्विक भोजन करना चाहिये। भक्तजन प्रात:काल उठकर नित्यक्रम से निवृत होकर पूजा करें। उसके बाद ही भोजन ग्रहण करें। भोजन पूरी तरह सात्विक होना चाहिये। भोजन में लहसुन, प्याज आदि प्रयोग ना करें। रात्रि को एक हीं बार भोजन करें। अब एकादशी तिथि को सुबह उठकर अपने नित्य कार्यों से निवृत हो जायें। स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें । पूजा गृह अथवा पूजा स्थल को शुद्ध कर लें। सभी पूजन सामग्री इकट्ठा कर लें। व्रत का संकल्प करें। अब श्रीविष्णु भगवान की पूजा करें। धूप-दीप अर्पित कर भोग लगायें। भगवान का स्मरण करके बारम्बार श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़े, नारियल अथवा बिजौरे के फल से भगवान को विधिपूर्वक पूजकर अर्घ्य दें । अन्य सामग्रियों के अभाव में सौ सुपारियों के द्वारा भी पूजन और अर्घ्यदान किये जा सकते हैं। षट्तिला एकादशी की कथा सुने अथवा सुनायें। तिल तथा कपास मिश्रित एक सौ आठ गोबर की पिण्डिकाओं से हवन करें। कथा सम्पूर्ण होने पर श्रीविष्णु जी की आरती करें। उपस्थित जनों में प्रसाद वितरित करें। ब्राह्मणों को दान दें। सारे दिन श्रीविष्णु भगवान का नाम जपें। सारी रात भगवान का कीर्तन एवं जागरण करें। अगली सुबह उठकर नित्य क्रम कर, स्नान करें एवं श्रीविष्णु जी का पूजन करें। तत्पश्चात् भोजन ग्रहण करें।