पापमोचनी एकादशी व्रत कथा प्रारम्भ (Page 4/4)
ऐसा कहकर मेधावी अपने पिता मुनिवर च्यवन के आश्रम पर गये।
उन्हें आया देख च्यवन ने पूछा- “बेटा! यह क्या किया? तुमने तो अपने पुण्य का नाश कर डाला।”
मेधावी बोले- “पिताजी! मैंने अप्सरा के साथ रमण करने का पातक किया है। कोई ऐसा प्रायश्चित बताइये, जिससे पाप का नाश हो जाये।”
च्यवन ने कहा- “बेटा! चैत्र कृष्ण पक्ष में जो पापमोचनी एकादशी होती है, उसका व्रत करने पर पापराशि का विनाश हो जायेगा।”
पिता का यह कथन सुनकर मेधावी ने उस व्रत का अनुष्ठान किया।
इससे उनका पाप नष्ट हो गया और वे पुन: तपस्या से परिपूर्ण हो गये ।
इसी प्रकार मंजुघोषा ने भी इस उत्तम व्रत का पालन किया ।
‘पापमोचनी’ का व्रत करने के कारण वह पिशाच-योनी से मुक्त हुई और दिव्य रूपधारिनी श्रेष्ठ अप्सरा होकर स्वर्गलोक में चली गयी।
राजन ! जो श्रेष्ठ मनुष्य पापमोचनी एकादशी का व्रत करते हैं, उनका सारा पाप नष्ट हो जाता है। इसको पढ़ने और सुनने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। ब्रह्म-हत्या, सुवर्ण की चोरी, सुरापान और गुरुपत्नीगामी करनेवाले महापातकी भी इस व्रत के करने से पापमुक्त हो जाते हैं। यह व्रत बहुत पुण्यमय है।