परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा (Page २/६)

सुर्यवंश में मान्धाता नामक एक चक्रवर्ती ,सत्य-प्रतिज्ञ और प्रतापी राजर्षि थे। वे प्रजा का अपने औरस पुत्रों की भाँति धर्मपूर्वक पालन किया करते थे। उनके राज्य में अकाल नहीं पड़ता था, मानसिक चिन्ताएँ नहीं सताती थी और व्याधियों का प्रकोप भी नहीं होता था।
उनकी प्रजा निर्भय तथा धन-धान्य से समृद्ध थी। महारज के कोष में केवल न्यायोपार्जित धन का ही संग्रह था। उनके राज्यमें समस्त वर्णों और आश्रमों के लोग अपने-अपने धर्म में लगे रहते थे।
मान्धाता के राज्य की भूमि कामधेनु के समान फल देनेवाली थी। उनके राज्य करते समय प्रजा को बहुत सुख प्राप्त होता था।
एक समय किसी कर्म का फल भोग प्राप्त होने पर राजा के राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई। इससे उनकी प्रजा भूख से पीड़ित हो नष्ट होने लगी; तब सम्पूर्ण प्रजा ने महाराज के पास आकर इस प्रकार कहा-