परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा (Page ३/६)
प्रजा बोली- “नृपश्रेष्ठ ! आपको प्रजा की बात सुननी चाहिये। पुराणों में मनीषी पुरुषों ने जल को ‘नारा’ कहा है ; वह नारा ही भगवान का अयन- निवासस्थान है ; इसलिये वे नारायण कहलाते हैं। नारायणस्वरूप भगवान विष्णु सर्वत्र व्यापकरूप में विराजमान हैं। वे ही मेघस्वरूप होकर वर्षा करते हैं, वर्षा से अन्न पैदा होता है और अन्न से प्रजा जीवन धारण करतीहै। नृपश्रेष्ठ! इस समय अन्न के बिना प्रजा का नाश हो रहा है; अत: ऐसा कोई उपाय किजिये, जिससे हमारे योग क्षेमका निर्वाह हो।”
राजा ने कहा- “आपलोगों का कथन सत्य है, क्योंकि अन्न को ब्रह्म कहा गया है। अन्न से प्राणी उत्पन्न होते हैं और अन्न से ही जगत जीवन धारण करता है। लोक में बहुधा ऐसा सुना जाता है तथा पुराण में भी बहुत विस्तार के साथ ऐसा वर्णन है कि राजाओं के अत्याचार से प्रजा को पीड़ा होती है; किन्तु जब मैं बुद्धिसे विचार करता हूँ तो मुझे अपना किया हुआ कोई अपराध नहीं दिखायी देता। फिर भी मैं प्रजा के हित के लिये पूर्ण प्रयत्न करूँगा।”