रमा एकादशी व्रत कथा प्रारम्भ (Page 4/6)
सोमशर्मा ने कहा- “ राजन ! वहाँ सब की कुशल है। यहाँ तो अद्भूत आश्चर्य की बात है। ऐसा सुन्दर और विचित्र नगर तो कहीं किसी ने भी नहीं देखा होगा । बताओ तो सही , तुम्हें इस नगर की प्राप्ति कैसे हुई ? ”
शोभन बोले- “द्वीजेन्द्र! कार्तिक के कृष्ण पक्ष में जो ‘रमा’ नामकी एकादशी होती है , उसी का व्रत करने से मुझे ऐसे नगर की प्राप्ति हुई है।
ब्रह्मन ! मैंने श्रद्धाहीन होकर इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया था; इसलिये मैं ऐसा मानता हूँ कि यह नगर सदा स्थिर रहनेवाला नहीं है। आप मुचुकुन्द की सुन्दरी कन्या चन्द्रभागा से यह सारा वृतान्त कहियेगा।”