रमा एकादशी व्रत कथा प्रारम्भ (Page 5/6)
शोभन की बात सुनकर सोमशर्मा ब्राह्मण राजा मुचुकुन्द के महल में गये और वहाँ चन्द्रभागा को सारा वृतान्त कह सुनाया।
सोमशर्मा बोले- “ शुभे ! मैंने तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा है तथा इन्द्रपुरी के समान उनके दुर्धर्ष नगर का भी अवलोकन किया है । वे उसे अस्थिर बतलाते थे। तुम उसको स्थिर बनाओ।”
चन्द्रभागा ने कहा- “ब्रह्मर्षे ! मेरे मन में पति के दर्शन की लालसा लगी हुई है। आप मुझे वहाँ ले चलिये मैं अपने व्रत के पुण्य से उस नगर को स्थिर बनाऊँगी। ”
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- राजन ! चन्द्रभागा की बात सुनकर सोमशर्मा उसे साथ ले मन्दराचल पर्वत के निकट वामदेव मुनि के आश्रम पर गये । वहाँ ऋषि के मंत्र की शक्ति तथा एकादशी सेवन के प्रभाव से चन्द्रभागा का शरीर दिव्य हो गया तथा उसने दिव्य गति प्राप्त कर ली।
इसके बाद वह पति के समीप गयी । उस समय उसके नेत्र हर्षोल्लास से खिल रहे थे। अपनी प्रिय पत्नी को आयी देख शोभन को बड़ी प्रसन्नता हुई ।
उन्होंने उसे बुलाकर अपने वामभाग में सिंहासन पर बिठाया ;