योगिनी एकादशी व्रत कथा (Page 2/4)

यक्षों ने कहा- “राजन! वह तो पत्नी की कामना में आसक्त हो अपनी इच्छा अनुसार घर में ही रमण कर रहा है।”
उनकी बात सुनकर कुबेर क्रोध में भर गये और तुरंत ही हेममाली को बुलवाया।
देर हुई जानकर हेममाली के नेत्र भय से व्याकुल हो रहे थे।
वह आकर कुबेर के सामने खड़ा हुआ। उसे देखकर कुबेर की आँखें क्रोध से लाल हो गयी।
वे बोले – ‘ओ पापी ! ओ दुष्ट ! ओ दुराचारी ! तूने भगवान की अवहेलना की है, अत: कोढ़ से युक्त अपनी उस प्रियतमा से वियुक्त होकर इस स्थान से भ्रष्ट होकर अन्यत्र चला जा।’
कुबेर के ऐसा कहने पर वह उस स्थान से नीचे गिर गया। उस समय उसके हृदय में महान दु:ख हो रहा था।
कोढ़ों से सारा शरीर पीड़ित था।
परन्तु शिव-पूजा के प्रभाव से उसकी स्मरण-शक्ति लुप्त नहीं हुई थी।
पातक से दबा होने पर भी वह अपने पूर्वकर्म को याद रखता था। तदन्तर इधर-उधर घूमता हुआ वह पर्वतों में श्रेष्ठ मेरुगिरि के शिखर पर गया।
वहाँ उसे तपस्या के पुञ्ज मुनिवर मार्कण्डेयजी का दर्शन हुआ।
पापकर्मा यक्ष ने दूर से ही मुनि के चरणों में प्रणाम किया ।
मुनिवर मार्कण्डेयने उसे भय से काँपते देख परोपकार की इच्छा से निकट बुलाकर कहा- ‘ तुझे कोढ़ के रोग ने कैसे दबा लिया ? तू क्यों इतना अधिक निन्दनीय जान पड़ता है ? ’