योगिनी एकादशी व्रत कथा (Page 3/4)

यक्ष बोला- ‘मुने ! मैं कुबेर का अनुचर हूँ। मेरा नाम हेममाली है।
मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल ले आकार शिव-पूजा के समय कुबेर को दिया करता था।
एक दिन पत्नी-सहवस के सुख में फँस जाने के कारण मुझे समय का ज्ञान ही नहीं रहा ;
अत: राजाधिराज कुबेरने कुपित होकर मुझे शाप दे दिया , जिससे मैं कोढ़ से आक्रान्त होकर अपनी प्रियतमा से बिछुड़ गया।
मुनिश्रेष्ठ ! इस समय किसी शुभ कर्म के प्रभाव से मैं आपके निकट आ पहुँचा हूँ।
संतों का चित्त स्वभावत: परोपकार में लगा रहता है, यह जानकर मुझ अपराधी को कर्तव्य का उपदेश दिजिये। ’
मार्कण्डेयजी ने कहा-“ तुमने यहाँ सच्ची बात कही है, असत्य-भाषण नहीं किया है;
इसलिये मैं तुम्हें कल्याणप्रद व्रत का उपदेश करता हूँ।
तुम आषाढ़ के कृष्ण पक्ष में ‘योगिनी’ एकादशी का व्रत करो । इस व्रत के पुण्य से तुम्हारा कोढ़ निश्चय ही दूर हो जायेगा।”