पापमोचनी एकादशी व्रत कथा (Page 2/4)

वे महर्षि उसी वन में रहकर ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। मंजुघोषा मुनि के भय से आश्रम से एक कोस दूर ही ठहर गयी और सुंदर ढ़ंग से वीणा बजाती हुई मधुर गीत गाने लगी।
मुनिश्रेष्ठ मेधावी घूमते हुए उधर जा निकले और उस सुंदरी अप्सरा को इस प्रकार गान करते देख सेना सहित कामदेव से परास्त होकर बरबस मोह के वशीभूत हो गये।
मुनि की ऐसी अवस्था देख मंजुघोषा उनके समीप आयी और वीणा नीचे रखकर उनका आलिंगन करने लगी। मेधावी भी उसके साथ रमण करने लगे।
कामवश रमण करते हुए उन्हें रात और दिन का भी भान न रहा। इस प्रकार मुनि जनोंचित सदाचार का लोप करके अप्सरा के साथ रमण करते उन्हें बहुत दिन व्यतीत हो गये।
मंजुघोषा देवलोक में जाने को तैयार हुई। जाते समय उसने मुनिश्रेष्ठ मेधावी से कहा- “ब्रह्मन ! अब मुझे अपने देश जाने की आज्ञा दिजिये।”
मेधावी बोले- “देवी ! जब तक सवेरे की संध्या न हो जाय तब तक मेरे ही पास ठहरो।”